एक गृहणी की कलम से (चैन से मर भी नहीं सकती)
एक गृहणी की कलम से!
शाम से ही मेरे सीने में बायीं तरफ़ हल्का दर्द था। पर इतने दर्द को तो औरतें चाय में ही घोलकर पी जाती हैं। मैंने भी यही सोचा कि शायद कोई झटका आया होगा.और रात के खाने की तैयारी में लग गई। किचन निपटाकर सोने को आई तो पति को बताया। पति ने दर्द की दवा लेकर आराम करने को कहा।साथ ही ज़्यादा काम करने की बात बोलकर मीठी डॉंट भी लगाई। देर रात को अचानक फिर दर्द बढ़ गया था। साँस लेने में भी तकलीफ़ सी होने लगी थी। “कहीं ये हार्ट अटैक तो नहीं !”ये विचार मन में आते ही मैं पसीने से भर उठी।“हे भगवान! पालक-मेथी तो साफ़ ही नहीं किए,मटर भी छिलने बाक़ी थे।
ऊपर से फ़्रीज़ में मलाई का भगोना भी पूरा भरा रखा हुआ है,आज मक्खन निकाल लेना चाहिए था।अगर मर गई तो लोग कहेंगे कि कितना गंदा फ़्रीज़ कर रखा था।कपड़े भी प्रेस को नहीं डाले। चावल भी ख़त्म हो रहे हैं, आज बाज़ार जाकर राशन भर लेना चाहिए था।मेरे मर जाने के बाद जो लोग बारह दिनों तक यहाँ रहेंगे, उनके पास तो मेरे मिसमैनेजमेंट के कितने सारे क़िस्से होंगे।अब मैं सीने का दर्द भूलकर काल्पनिक अपमान के दर्द को महसूस करने लगी। *“नहीं भगवान! प्लीज़ आज मत मारना। आज ना तो मैं तैयार हूँ और ना ही मेरा घर।”*यही प्रार्थना करते-करते मैं गहरी नींद में सो गई। सुबह फिर गृहकार्य में लग गई।
This is real responsibility of a lady.
*चैन से मर भी नहीं सकती।*
सभी गृहणियों को समर्पित।
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