पुरुषों का दर्द

 क्या पुरुष प्रताड़ित नहीं होते 

ठीक हैं पुरुष पे बल प्रयोग नही हो सकता। 

प्रताड़ना का अभिप्राय सिर्फ बल प्रयोग ही तो नही हैं ना ! मानसिक रूप से जो वेदना मिलती है उसका क्या ? 

क्या वो पुरुष को खोखला नहीं करती ?

और रही सही कसर ;

"हम सबके सामने रो भी तो नही सकते ना"

वरना लोग कहेंगे -

देखो ये कैसे रो रहा है...

जैसे हम इंसान हैं ही नहीं!

हमारे सारे पुर्जे पत्थर के बने हैं। 

कोई फरक नहीं पड़ता हमें किसी बात का;


घुल जातें हैं हम अन्दर ही अन्दर , 

पर रो नहीं पाते , 

किसी से कुछ कह नहीं पाते।

हमें भी भावनाओं की जरूरत होती हैं

हमें भी कन्धे की जरूरत होती है 

कोई हमारे भी बालों को सहलाये 

और कहें कि सब ठीक हो जायेगा।

हमारे कठोर शरीर के पीछे एक कोमल मन भी होता हैं 

क्यों नही 

कोई देखता हैं उसे 

बस जो आता हैं ठेस पहुंचा के चला जाता हैं 

अरे! टुट जाते हैं हम भी 

कुछ बातें नाजुक सी होती हैं हम में


शारीरिक और मानसिक रूप से जो सुख

एक स्त्री को पुरुष से चाहिये होता हैं।

पुरुष भी स्त्री वही सब चाहता उसी स्तर पर

हाँ मुझे भी एक ऐसा घर चाहिए .....जहाँ मै स्खलित हो सकूँ;

अपने मन से...अपने तन से 


घर से उलाहदित पुरुष जब इन्हीं कारणों से बाहर प्रेम खोजता है 

तब हमारा फेमिनिज्म ...उस पर तुरंत इल्जाम लगाता हैं-

दोगलेपन का ...शारीरिक शोषण का... औरतखोर होने का


भले ही उस फेमिनिज्म के..तथाकथित तीन-तीन अफेयर रहें हो 

पर वो इल्जाम पुरुष पर ही लगायेगी...जैसे उनका 

कोई दखल ही न हो.. अस्तित्व ही ना हो 

हमारे समाज मे. ...ओशो नमन

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